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Social media और मानव में संबंध भाग - 03

 Hey Dosto! आप सभी का स्वागत् है, हमारे easygyaan10 blog में। तो दोस्तों आज हम जानेंगे की ये सोशल मिडिया और मनुष्य में क्या संबंध है, सोशल मीडिया ने मानव जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन लाया है और इसके साथ-साथ मानव-मानव संबंधों पर भी गहरा प्रभाव पड़ा है। यह नए संचार के ढंगों को प्रोत्साहित करता है, लेकिन कुछ दुष्प्रभावों के साथ साथ आने वाले चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है। सकारात्मक पहलुओं में, सोशल मीडिया ने लोगों के बीच संवाद को सुगम और त्वरित बना दिया है। लोग अपने दोस्तों, परिवार, और समुदाय के साथ अब भी संपर्क बनाए रख सकते हैं, भले ही वे भौतिक रूप से दूर हों। इससे लोग आपसी रिश्ते मजबूत कर सकते हैं और समय के साथ अपने परिवार और मित्रों के साथ अच्छी तरह से जुड़ सकते हैं। सोशल मीडिया ने विभिन्न समुदायों को एकत्र किया है और उन्हें अपने इंटरेस्ट्स और धार्मिक या सामाजिक उद्देश्यों के अनुसार गुणवत्ता सम्पन्न जानकारी साझा करने का मौका दिया है। इससे लोग विश्वास और सम्मान के साथ समूहों में शामिल हो सकते हैं, जो उनके सोच, मूल्यों, और दृष्टिकोण के साथ मिलते हैं। हालांकि, यहां कुछ चुनौतियाँ भी

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Life is Game जीवन खेल है। Part 02

 Hey Dosto! आप सभी का स्वागत् है, हमारे easygyaan10 blog में। तो दोस्तों इसके पिछले भाग में हमने पढ़ा था, एक काल्पनिक कहानी के बारे में। जो बहुत Interesting है। वैसे तो लाइफ को कोई प्यार कहता है। या पैसा या ख़ुशी। पर इसका इशारा तो ज़िन्दगी को खुल कर जीने की तरफ है बिना डर के । पर आप इसे कुछ भी कहे। ज़िन्दगी तो एक ज़िन्दगी ही है। बिल्कुल एक किताब की पन्ने की तरह जिसमे चाहे कोई कुछ भी लिख दे एक दिन इसे ख़तम होना ही है। तो अब हम इसी को आगे बढ़ाते हुए एक Real Life Example लेते हैं या एक रियल Situation लेते है।  एक Dance Compition हो रहा है, चार Contestants है। चारो एक ही जैसा Dance करते है। Technic से देखे तो एक ही जैसा सीखे हुये है। एक ही गुरू से सीखे हुए है। बिल्कुल चार फाइनलिस्ट। एक जो है वो Dance करने वाला है...फाइनल है। या तो हार है या जीत है। एक जो Dance करने वाला है, जो पहला है.., जजेस को खुश करने के लिए, Audiunce(Public) को खुश करने के लिए। उसका यही मकसद है। किसी भी तरीके से जजेस को खुश कर दूँ। Audience को खुश कर दूँ। तो मज़ा आ जायेगा।  मैं जीत जायूँगा। उसके चारो तरफ क्या होगी, दीवारे होगी

Life is Game जीवन खेल है..

 Hey Dosto! आप सभी का स्वागत् है, हमारे easygyaan10 blog में। तो दोस्तों आज हम जानेंगे की ज़िन्दगी एक खेल है, अगर इसे एक खेल तरह समझा जाये तो इसके लिए आपको इस काल्पनिक कहानी को ध्यान से समझनी होगी। तो शुरू करते है...। काल्पनिक कहानी:- मैं एक छोटा सा बच्चा..., खेल रहा हूँ, भाग रहा हूँ। पूरी दुनिया मेरे लिए एक Playground जैसी है। मजा आ रहा है कोई Compition नही है कोई डर नही है। कोई जीतने का लालच नही है, मतलब ये नही है की मैं जीतने के लिए खेल रहा हूँ।आपने देखी होगी 2-3 साल के बच्चों का गेम उनको क्या फ़र्क पड़ता है। उनके लिये ज़िन्दगी का मतलब ही खेल है। उनके लिये ख़ुशी का मतलब ही खेल है। Exactly मैं ऐसा एक बच्चा था, जो सारे बच्चे होते है। और ऐसा लगता था कि ज़िन्दगी हमेशा ऐसी ही चलने वाली है। जैसे जैसे बड़ा हुआ, धीरे धीरे लोगो ने मुझे समझाना शुरू किया। क्या ये कोई खेल है जहाँ पर न कोई हार है न जीत है। अगर खेलना ही है तो जीतने के लिए खेलो। अगर तुम नही जीते तो तुम हार गए। अगर किसी भी चीज में चाहे वो पढ़ाई हो,Life हो या फिर कोई भी चीज हो, चाहे रेस हो। अगर तूम नही जीते, First नही आये, तो इसका मतलब तुम

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बचपन क्या है? What is Childhood..?

  Hey Dosto! आप सभी का स्वागत् है, हमारे easygyaan10 blog में। तो आज हम जानेगे कि बचपन क्या है? किसी ने सायद सच ही कहा है बच्चे ही भगवान् के सबसे ज्यादा करीब होते है। मानो जैसे स्वर्ग में हो। अगर अपने बचपन को देखना हो, तो आज के बच्चों को देखो। आप का वही बचपन नजर आएगा। किसी बात की फ़िक्र ही नही, किसी की यादे भी नही। एकदम शांत, शरारती नटखट नकलची, खुलकर हँसना, कुछ भी कर लेने का साहस,उत्साह और सबकुछ जानने की इच्छा आदि। सबकुछ था कोई कमी नही थी बचपन में।  पर आपके लिए बचपन क्या होगा? जब आप जवान और बूढ़े की उम्र में हो और समझना चाहे तो। क्या वो एक स्वर्ग के जैसा था? जहाँ जाने का मन आपका अब भी करता है। या फिर कोई अच्छा सपना था जो अब टूट गया। कई लोग कहते है कि मैं वही छोटा सा बच्चा हूँ। क्या सच में। या फिर सिर्फ बचपन के यादो को याद करके बोल रहे हो। हाँ मैं बच्चा हूँ। क्या बचपन के यादो की थ्रू जीना ही बचपन है। क्या बचपन की याद ही बचपन है। या बचपन कुछ और है..? बचपन एक खेल था, वो भी बच्चों का खेल। पर यहाँ सवाल उनकी परवरिश का है। माँ बाप और परिवार बचपन में बच्चे को जो संस्कार देते है वो वैसा ही बन जात