सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Social media और मानव में संबंध भाग - 03

 Hey Dosto! आप सभी का स्वागत् है, हमारे easygyaan10 blog में। तो दोस्तों आज हम जानेंगे की ये सोशल मिडिया और मनुष्य में क्या संबंध है, सोशल मीडिया ने मानव जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन लाया है और इसके साथ-साथ मानव-मानव संबंधों पर भी गहरा प्रभाव पड़ा है। यह नए संचार के ढंगों को प्रोत्साहित करता है, लेकिन कुछ दुष्प्रभावों के साथ साथ आने वाले चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है। सकारात्मक पहलुओं में, सोशल मीडिया ने लोगों के बीच संवाद को सुगम और त्वरित बना दिया है। लोग अपने दोस्तों, परिवार, और समुदाय के साथ अब भी संपर्क बनाए रख सकते हैं, भले ही वे भौतिक रूप से दूर हों। इससे लोग आपसी रिश्ते मजबूत कर सकते हैं और समय के साथ अपने परिवार और मित्रों के साथ अच्छी तरह से जुड़ सकते हैं। सोशल मीडिया ने विभिन्न समुदायों को एकत्र किया है और उन्हें अपने इंटरेस्ट्स और धार्मिक या सामाजिक उद्देश्यों के अनुसार गुणवत्ता सम्पन्न जानकारी साझा करने का मौका दिया है। इससे लोग विश्वास और सम्मान के साथ समूहों में शामिल हो सकते हैं, जो उनके सोच, मूल्यों, और दृष्टिकोण के साथ मिलते हैं। हालांकि, यहां कुछ चुनौतियाँ भी

बचपन क्या है? What is Childhood..?

 Hey Dosto!

आप सभी का स्वागत् है, हमारे easygyaan10 blog में। तो आज हम जानेगे कि बचपन क्या है? किसी ने सायद सच ही कहा है बच्चे ही भगवान् के सबसे ज्यादा करीब होते है। मानो जैसे स्वर्ग में हो। अगर अपने बचपन को देखना हो, तो आज के बच्चों को देखो। आप का वही बचपन नजर आएगा। किसी बात की फ़िक्र ही नही, किसी की यादे भी नही। एकदम शांत, शरारती नटखट नकलची, खुलकर हँसना, कुछ भी कर लेने का साहस,उत्साह और सबकुछ जानने की इच्छा आदि। सबकुछ था कोई कमी नही थी बचपन में। 

पर आपके लिए बचपन क्या होगा? जब आप जवान और बूढ़े की उम्र में हो और समझना चाहे तो। क्या वो एक स्वर्ग के जैसा था? जहाँ जाने का मन आपका अब भी करता है। या फिर कोई अच्छा सपना था जो अब टूट गया। कई लोग कहते है कि मैं वही छोटा सा बच्चा हूँ। क्या सच में। या फिर सिर्फ बचपन के यादो को याद करके बोल रहे हो। हाँ मैं बच्चा हूँ। क्या बचपन के यादो की थ्रू जीना ही बचपन है। क्या बचपन की याद ही बचपन है। या बचपन कुछ और है..?

Bachpan kya hai

बचपन एक खेल था, वो भी बच्चों का खेल। पर यहाँ सवाल उनकी परवरिश का है। माँ बाप और परिवार बचपन में बच्चे को जो संस्कार देते है वो वैसा ही बन जाता है। और संगत व Environment का भी बड़ा योगदान होता है। पर बच्चे जिन बातो और कार्यो को करने से उन्हें इनाम और तारीफ मिलती है उसे ही करने की कोशिश करते है और उन्हें ही अपना आदत बना लेते है। जिन बच्चों को उनके माता पिता से उचित प्रेम और प्रसंसा मिलती है, वो अच्छे और आत्मविश्वास से भरे होते है। लेकिन जिन बच्चों को निंदा, डाट- फटकार, शारीरिक दण्ड आदि मिलता है। वो बहुत जिद्दी और शैतान बन जाते है या डरपोक। क्योंकि बच्चे बचपन में बहुत ही भावुक और कल्पनाशील होते है। अगर देखा जाये तो माँ बाप की सबसे बड़ी जिम्मेदारी उनकी बच्चों की अच्छी परिवरिश है। उनके लिये जो उनका सच में भला चाहते हो।

बचपन सभी की एक ऐसी उम्र है, जिन्हें लोग कभी नही भुला पायेगे। बचपन में हम बहुत जिद्दी होते थे, और रोना तो हमे बखूबी आता था लेकिन वही दूसरी ओर किसी से दो ऊँगली मिलते ही दोस्ती हो जाती थी और बेवज़ह ही हमेशा खुश थे। किसी ख़ुशी का इंतजार नही करते थे। बचपन में हम खुद ख़ुशी थे, प्यार थे। तो बचपन में हम ऐसा क्या करते थे? इसलिये बच्चे थे, सायद कुछ नही मानते थे। जैसे ही मानना शुरू किया, बड़े हो गये। न किसी चीज को मुश्किल मानते थे न आसान। न ये मानते थे की मैं कुछ नही कर सकता। और न ही कुछ कर सकता हूँ। बस कर देते थे। वो अच्छा है या बुरा हमे पता नही था। सही गलत पता नही था। लोग हमे बताते थे। और हम मान लेते थे।

तो सारा खेल मानने का है। तो ये भिन्नताएँ कहाँ से आ गयी। रंग रूप वेष भाषा में अनेकताये कहाँ से आ गयी। सब एक ही जैसे थे माँ के पेट से निकले तो। जैसा जैसा हम मानते गए हमारी सोच वैसे वैसे बनती गयी। और हम वैसा सोचने लगे और बड़े हो गए। एक बड़ा आदमी। बड़ा मतलब क्या? जिसे दुःखी होने से दुनिया की कोई भी ताक़त बचा नही सकती। 

तो चलो मेरे साथ फिर से वही बच्चा बने। (बच्चा बनने का मतलब क्या सभी चीजो को एक बच्चे की तरह हैंडल करते है। बड़े की तरह नही जो ज्यादा सोचता है। ) कुछ मान कर ही हम बड़े हुए थे। कुछ और मान कर वही छोटा बच्चा बन जाते है। जो सपने देखने से नही डरता। जो कुछ करने से नही डरता। जिसे लगता है कि सबकुछ उसी के लिए ही हो रहा है। ये हवाएँ चल रही मेरे लिये। ये मौसम बदल रहा है मेरे लिए, ये बारिश हो रही है सिर्फ मेरे लिए। Nature में जो कुछ भी हो रहा है सबकुछ मेरे लिए ही हो रहा है। वो बच्चा..., कौन है? आप हो, हम है और मैं हूँ। जिसे न का मतलब समझ नही आता। जिसके लिए जिंदगी का नाम ही.... खेल है। 



Thanks for read.

Love you All

#jpnetam.


हमारा पोस्ट आपको कैसा लगा, Comment करके जरूर बताये। और ऐसी ही छोटी छोटी ज्ञान के लिए हमसे जुड़े रहिये या फिर blog को suscribe करे। share करे।

धन्यवाद! 

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Finished & Uunfinished में क्या अंतर है?

Hey Dosto! आप सभी का स्वागत है, हमारे easygyaan10 blog में। तो दोस्तों आज हम जानेगें कि Finished & Unfinished में क्या अन्तर है। वैसे तो ये बात बहुत छोटी है, लेकिन आपको अगर ये समझ आ गयी। तो ये इतनी बड़ी है जिसकी कोई हद नही। ये उन Students के लिए बहुत जरूरी है, जिनका exam होने ही वाला है या फिर कुछ ही दिन बचे हो एग्जाम के लिए। Finished का simple मतलब है काम का पूरा होना। और  Unfinished का मतलब है काम को अधूरा करना। हम इन शब्दों का उपयोग, Students के एग्जाम के वक़्त होने वाली एक गलती को अच्छे से समझाने के लिए कर रहे है। जिससे वो आने वाले time में ये गलती दुबारा न करे। इस बार वो अच्छे से exam देने के लिए बैठे और उसे clear करे। और वो अपना Exam देखकर निकले तो ये न कहे की यार जो मैंने कुछ पार्ट अच्छे  से पढ़ा था वो मुझे याद क्यों नही आया। जिसे नही पढ़ा था उसे जाने दो वो बात अलग है। लेकिन अच्छे से पढ़कर finish किया हुआ चीज मुझे याद क्यों नही आया। Finished & Unfinished में अंतर :- इसे समझने के लिए एक Example लेते है, मानलो एक खाने पिने के Hotel में एक वेटर है। तो वह

Yes or No ? ज्यादा Important क्या है? हाँ बोलना या न बोलना।

Hey Dosto! सभी चीजो में हाँ बोलना ठीक नही है। हाँ बोलने का भी, और न बोलने का भी ये दोनों Quality हमारे अंदर होनी चाहिए। लेकिन ज्यादा important क्या है ? कभी सोचा है ? Yes बोलना या फिर No बोलना। No....सही कहा। अगर आपको न बोलना ही नही आता। तो दुनिया आपके साथ क्या करेगी? आपका Use करेगी। अपनी जो इच्छा है, उसे पूरा करने के लिए। इसका मतलब ये नही है कि सबको No.... वो तो आपको देखना है, वो भी हाँ बोलने से पहले। क्या मैं इस काम को क़र सकता हूँ। क्या ये काम सही है? क्या इस काम में मेरा मन है भी, या नही। जैसे ही अंदर से आये हाँ.... तो कर दो। या फिर आपका मन ही नही था। तो बाद में परेशानी आपको ही होगी। तो ज्यादा घुमा फ़िरा के बाद नही करनी है। Direct सच कह देना है, नही तो नही। और कुछ काम बहुत जरूरी होता है, जिसमे Yes और No matter नही करती। वो तो आपको करना ही होगा। बशर्ते उस काम से, किसी के साथ गलत न हो। और पढ़े:- आप अनोखे हो। You are Unique. अनुमान या तय करना और स्वीकार करना क्या है?     Thanks, for read. love u all. #jpnetam.

AI और Human

  Hey Dosto! आप सभी का स्वागत् है, हमारे easygyaan10 blog में। तो दोस्तों आज हम जानेंगे की AI और मानव के संबंध किस प्रकार है। और भविष्य में कैसे होने की सम्भावना है। AI और मानवता के बीच कई समानताएं और अंतर हैं। यहां कुछ मुख्य सामानताएं और अंतर दिए गए हैं: समानताएं: सोचने की क्षमता: AI और मानव दोनों की सोचने की क्षमता होती है। AI भी अब गहराई से सोच, समझ, और निर्णय लेने की क्षमता विकसित कर रही है। सीखने की क्षमता: AI सिस्टम स्वतंत्र रूप से सीख सकती है और अनुभव से बेहतर हो सकती है, जैसे कि मानव भी नई जानकारी सीख सकते हैं। संचार की क्षमता: AI मानव के साथ संचार करने की क्षमता विकसित कर सकती है, जैसे कि भाषा, भावनाओं को समझना और प्रदर्शित करना। अंतर: भावनाएं और उपेक्षा: AI विलक्षण भावनाएं और उपेक्षा को समझने में कठिनाई हो सकती है, जो मानव के लिए सामान्य होती हैं। सामग्री का आंकलन: AI शक्तिशाली गणना करने और सामग्री को अधिक सुविधाजनक ढंग से आंकलित करने की क्षमता रखती है, जो मानव के लिए कठिन हो सकती है। मूल्यों का अनुमान: AI नैतिक और न्यायिक मूल्यों का अनुमान नहीं कर सकती है, जो मानवता का एक म