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आप सभी का स्वागत् है, हमारे easygyaan10 blog में। तो आज हम जानेगे कि बचपन क्या है? किसी ने सायद सच ही कहा है बच्चे ही भगवान् के सबसे ज्यादा करीब होते है। मानो जैसे स्वर्ग में हो। अगर अपने बचपन को देखना हो, तो आज के बच्चों को देखो। आप का वही बचपन नजर आएगा। किसी बात की फ़िक्र ही नही, किसी की यादे भी नही। एकदम शांत, शरारती नटखट नकलची, खुलकर हँसना, कुछ भी कर लेने का साहस,उत्साह और सबकुछ जानने की इच्छा आदि। सबकुछ था कोई कमी नही थी बचपन में।
पर आपके लिए बचपन क्या होगा? जब आप जवान और बूढ़े की उम्र में हो और समझना चाहे तो। क्या वो एक स्वर्ग के जैसा था? जहाँ जाने का मन आपका अब भी करता है। या फिर कोई अच्छा सपना था जो अब टूट गया। कई लोग कहते है कि मैं वही छोटा सा बच्चा हूँ। क्या सच में। या फिर सिर्फ बचपन के यादो को याद करके बोल रहे हो। हाँ मैं बच्चा हूँ। क्या बचपन के यादो की थ्रू जीना ही बचपन है। क्या बचपन की याद ही बचपन है। या बचपन कुछ और है..?
बचपन एक खेल था, वो भी बच्चों का खेल। पर यहाँ सवाल उनकी परवरिश का है। माँ बाप और परिवार बचपन में बच्चे को जो संस्कार देते है वो वैसा ही बन जाता है। और संगत व Environment का भी बड़ा योगदान होता है। पर बच्चे जिन बातो और कार्यो को करने से उन्हें इनाम और तारीफ मिलती है उसे ही करने की कोशिश करते है और उन्हें ही अपना आदत बना लेते है। जिन बच्चों को उनके माता पिता से उचित प्रेम और प्रसंसा मिलती है, वो अच्छे और आत्मविश्वास से भरे होते है। लेकिन जिन बच्चों को निंदा, डाट- फटकार, शारीरिक दण्ड आदि मिलता है। वो बहुत जिद्दी और शैतान बन जाते है या डरपोक। क्योंकि बच्चे बचपन में बहुत ही भावुक और कल्पनाशील होते है। अगर देखा जाये तो माँ बाप की सबसे बड़ी जिम्मेदारी उनकी बच्चों की अच्छी परिवरिश है। उनके लिये जो उनका सच में भला चाहते हो।
बचपन सभी की एक ऐसी उम्र है, जिन्हें लोग कभी नही भुला पायेगे। बचपन में हम बहुत जिद्दी होते थे, और रोना तो हमे बखूबी आता था लेकिन वही दूसरी ओर किसी से दो ऊँगली मिलते ही दोस्ती हो जाती थी और बेवज़ह ही हमेशा खुश थे। किसी ख़ुशी का इंतजार नही करते थे। बचपन में हम खुद ख़ुशी थे, प्यार थे। तो बचपन में हम ऐसा क्या करते थे? इसलिये बच्चे थे, सायद कुछ नही मानते थे। जैसे ही मानना शुरू किया, बड़े हो गये। न किसी चीज को मुश्किल मानते थे न आसान। न ये मानते थे की मैं कुछ नही कर सकता। और न ही कुछ कर सकता हूँ। बस कर देते थे। वो अच्छा है या बुरा हमे पता नही था। सही गलत पता नही था। लोग हमे बताते थे। और हम मान लेते थे।
तो सारा खेल मानने का है। तो ये भिन्नताएँ कहाँ से आ गयी। रंग रूप वेष भाषा में अनेकताये कहाँ से आ गयी। सब एक ही जैसे थे माँ के पेट से निकले तो। जैसा जैसा हम मानते गए हमारी सोच वैसे वैसे बनती गयी। और हम वैसा सोचने लगे और बड़े हो गए। एक बड़ा आदमी। बड़ा मतलब क्या? जिसे दुःखी होने से दुनिया की कोई भी ताक़त बचा नही सकती।
तो चलो मेरे साथ फिर से वही बच्चा बने। (बच्चा बनने का मतलब क्या सभी चीजो को एक बच्चे की तरह हैंडल करते है। बड़े की तरह नही जो ज्यादा सोचता है। ) कुछ मान कर ही हम बड़े हुए थे। कुछ और मान कर वही छोटा बच्चा बन जाते है। जो सपने देखने से नही डरता। जो कुछ करने से नही डरता। जिसे लगता है कि सबकुछ उसी के लिए ही हो रहा है। ये हवाएँ चल रही मेरे लिये। ये मौसम बदल रहा है मेरे लिए, ये बारिश हो रही है सिर्फ मेरे लिए। Nature में जो कुछ भी हो रहा है सबकुछ मेरे लिए ही हो रहा है। वो बच्चा..., कौन है? आप हो, हम है और मैं हूँ। जिसे न का मतलब समझ नही आता। जिसके लिए जिंदगी का नाम ही.... खेल है।
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Love you All
#jpnetam.
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