Hey Dosto!
आप सभी का स्वागत् है, हमारे easygyaan10 blog में। तो दोस्तों आज हम जानेंगे की ज़िन्दगी एक खेल है, अगर इसे एक खेल तरह समझा जाये तो इसके लिए आपको इस काल्पनिक कहानी को ध्यान से समझनी होगी। तो शुरू करते है...।
काल्पनिक कहानी:- मैं एक छोटा सा बच्चा..., खेल रहा हूँ, भाग रहा हूँ। पूरी दुनिया मेरे लिए एक Playground जैसी है। मजा आ रहा है कोई Compition नही है कोई डर नही है। कोई जीतने का लालच नही है, मतलब ये नही है की मैं जीतने के लिए खेल रहा हूँ।आपने देखी होगी 2-3 साल के बच्चों का गेम उनको क्या फ़र्क पड़ता है। उनके लिये ज़िन्दगी का मतलब ही खेल है। उनके लिये ख़ुशी का मतलब ही खेल है। Exactly मैं ऐसा एक बच्चा था, जो सारे बच्चे होते है। और ऐसा लगता था कि ज़िन्दगी हमेशा ऐसी ही चलने वाली है।
जैसे जैसे बड़ा हुआ, धीरे धीरे लोगो ने मुझे समझाना शुरू किया। क्या ये कोई खेल है जहाँ पर न कोई हार है न जीत है। अगर खेलना ही है तो जीतने के लिए खेलो। अगर तुम नही जीते तो तुम हार गए। अगर किसी भी चीज में चाहे वो पढ़ाई हो,Life हो या फिर कोई भी चीज हो, चाहे रेस हो। अगर तूम नही जीते, First नही आये, तो इसका मतलब तुम हार गए। अगर तुम Top पे नही हो तो तुम हार गए। तो पहले तो बच्चे का मन इस चीज को नही मानता था, पर धीरे धीरे उसने Accept कर लिया। मान लिया। कि ये बात तो सच है, अगर खेलना ही है तो जीतने के लिए खेलना है। तभी मजा है खेलने में या क्या मज़ा है। इधर उधर भागते रहो खेलते रहो, ऐसी लाइफ का क्या फायदा? तो जीतना है हर चीज में जीतना है।
जैसे ही ये मैंने माना और रात को जब मैं सोया तब तक सब कुछ ठीक था। पर जब अगले दिन सुबह मैं उठा...तो मैंने देखा के मेरे चारो तरफ दीवारें ही दीवारे है....। मैं डर गया देखकर मेरी हालत खराब। कि एक बच्चे की आदत थी, खेलना दौड़ना,वो करना ये करना उसको लगता था यही ज़िन्दगी है। उसने देखा कि मैं कहाँ चारो तरफ से अंधेरे में आ गया। मैं वहाँ भगा यहाँ भागा..,जहाँ देखा वहाँ दीवार। इतनी ऊँची दीवार की आप सोच भी नही सकते।और मजे की बात ये थे कि मैं अकेला नही था, उन दीवारो में। पूरी की पूरी दुनिया थी।
Life is Game :-
मैं उन लोगो के पास गया, अपने बड़ो के पास में, और लोगो के पास में और उनसे कहा कि ये क्या हुआ, कल तक तो जब मैं सोया था तो सबकुछ ठीक था। लेकिन आज ये दीवारे कहाँ से आ गयी। तो उन्होंने कहा कि ये तेरी गलतफैमी है, ये दीवारे शुरू से है। ये आज से नही, सदियो से है। ये थी, हैं और रहेगी। तो मेरे को समझ नही आया एक बच्चे के दिमाग ने इस बात को हज़म नही कर पाया। मैंने कहा ये नही हो सकता। तो Finally मैंने लोगो से जाकर ये पूछना शुरू किया, कि हाँ मैं गलत था, ये दीवारे थी, है और रहेगी। क्या कोई रास्ता है इससे परे जाने का। क्या कोई ऐसी दुनिया है जो इसके परे है। किसी के पास कोई जवाब नही था। पर एक आदमी मिला उसने मुझे कहा कि बेटा एक रास्ता है, वो सीढ़िया दिख रही है सामने ऊपर जा रही है। सीढ़ि न अभी बड़ी है जो पहली सीढ़ी है। और आगे जाकर धीरे धीरे छोटी होती जायेगी। और बहुत ऊपर तक जायेगी। अगर तू वहाँ तक पहुँच गया। तो तू उस दीवार के परे निकल जायेगा। तुझे सिर्फ एक एक करके उन सीढ़ियों पर चढ़ना है। मैंने Accept कर लिया। कि हाँ मैं चढूँगा। चाहे कुछ भी हो जाये, कुछ भी करना पड़े।
मैं गया और जाकर करके भागने लगा। उन सीढ़ियों की तरफ और पूरी दुनिया उस तरफ भाग रही थी। मारकाट मची हुई थी, हर आदमी को उस सीढ़ी पर चढ़ना था। हर आदमी को। लेकिन जब मैं चढ़ने गया तो मेरे आसपास के लोगों ने आकर बोला- बेटा कोई फायदा नही है, हम बहुत सालो से कोशिश कर रहे है, उन सीढ़ियों पर चढ़ने कि नही चढ़ सकते.... हो ही नही सकता। देख हमारे आसपास लोगो में कोई नही गया उस तरफ। मैंने दूर दूर तक मेरे परिवार में किसी को नही देखा उन सीढ़ीयों की तरफ जाते हुए। सायद तू भी नही जा पायेगा। चल छोड़ना क्यों कोशिश कर रहा है।तू यही पर रह हमारे पास में। देख सब लोग है, तेरे पास में। मैंने कहा नई मैं चढूँगा। मैं करूँगा कोशिश। मैं भागता हुआ गया, और मैं पहली सीढ़ी में चढ़ गया। बहुत Compition था, लड़ाई थी झगड़ा था। किसी को मारा किसी को हटाया। किसी को गिराया, किसी पर पैर रखा। कुछ भी करके finally उस पहली सीढ़ी पर चढ़ गया। पहुँच गया, बहुत खुश। I can't Express की कितना खुश था। ख़ुशी किस चीज की थी, कि मैं दुनिया से ऊपर उठ गया। बाक़ी करोड़ो लोग मेरे साथ थे, वो पीछे रह गए। और मैं आगे निकल गया। इस चीज की ख़ुशी थी।
फिर मैंने देखा, आगे एक और सीढ़ी है। उस पे चढ़ा लोग कम होते गए। मतलब जगह भी कम लेकिन उस कम जगह के अंदर बहुत सारे लोग भरे हुए थे। जिसकी वजह से मुझे थोड़ा डर लगने लगा। क्योंकि यहाँ पर गलती की कोई गुंजाईश भी नही थी। क्योंकि जब तक मैं जमीन पर था, तब तक कोई डर नही था या कह लो डर कम था, limited था। जैसे जैसे ऊपर चढ़ रहा था डर बढ़ता जा रहा था। अब डर था निचे गिरने का। हल्का सा गिरा तो मेरा क्या होगा। फिर मैं और ऊपर चढ़ा, तीसरी सीढ़ी,चौथी सीढ़ी,पाँचवी सीढ़ी करते करते एक दिन ऐसा आया कि उस सीढ़ी के Top पर पहुँच गया। जहाँ पर मुझे बताया गया था की ऊपर जाने के बाद एक ऐसा रास्ता मिलेगा, जहाँ इस दीवार के परे निकल जायेंगे। जहाँ पर रौशनी ही रौशनी होगी। खुशियाँ ही खुशियाँ होगी। लेकिन मजे की बात....। वहाँ पर Top पर कुछ लो थे। जगह बहुत छोटी थी, वहाँ पर बहुत कम लोग खड़े थे। और वहाँ पर जाने के बाद भी उछले जा रहे थे.... और ऊपर जाने की कोशिश कर रहे थे।मतलब अभी भी तसल्ली नही हुई थी। मैंने कहा ये तो धोखा है।
ये तो मेरे साथ धोखा हुआ है, मुझे सबने कहा था, कि यहाँ पर एक रास्ता है। ये रास्ता थोड़ी है, ये तो बेवकूफी है। मैं यहाँ Top पर हूँ ख़ुशी के लिए। लेकिन उस ख़ुशी का तो नामोनिशान ही नही है। यहाँ पर तो और ज्यादा डर है। और ज्यादा Compition है। इतना ऊपर से गिरा तो मरा। यहाँ तो गलती की भी गुंजाइस नही है। और दीवार इतना बड़ा... की दूर दूर तक खूब अँधेरा। लोग बिल्कुल डरे हुए बैठे है। तो मैंने कहा चलो न लोगो को निचे चलकर बताते है।की ये सब झूठ है धोखा है। ये सबको बेवकुफ बनाया जा रहा है।और कुछ भी नही। तो उन लोगो ने कहा छोड़ न यार यहाँ से कौन जायेगा। यहाँ क्या प्रॉब्लम है, बैठे हुए है देख Top पर । वो लोग तो हमी को देख रहे है। यहाँ पर मजा तो आ रहा है। निचे क्या हालत है, देख। वहाँ जायेगा तू वापिस। किस चक्कर में है। भाई! मैंने कहा मैं तो जायूँगा। मैं उतरा निचे...। मैंने जाकर पूरी दुनिया को बताया। की ये धोखा है। कुछ नही है ये। ये ऊपर जाककर सीढ़ी ख़तम हो गयी है। आगे कुछ नही है है। आगे और अँधेरा ही अँधेरा है। किसी ने नही सुनी।
तब अंदर से कही से अर्ज आई की मुझे इस दिवार को तोड़ना है। किसी भी तरीके से तोड़ दूंगा इस दीवार को। एक बड़ा सा हथौड़ा लिया। और भागा उस दीवार की तरफ तो लोग देखकर हँसने लग गए के ये तू क्या कर रहा हैं। दीवार को तोड़ेगा... किसी ने ध्यान तक नही दिया। किसी ने देखा भी नही....सबका ध्यान उन सीढ़ियों की तरफ था। आगे बढ़ना है, ऊपर चढ़ना है। जब मैं गया उस हथोड़े को लेकर करके और पूरी जान लगा के उस दीवार पर मार दिया। और जैसे ही मैंने मारा, तो वो हथौड़ा दीवार के पार निकल गया। और जा करके निचे जमीन पर टकराया। मैंने कहा ये क्या है? ये कैसे हो सकता है? फिर मैंने अपने हाथ को उस दीवार की ओर आगे बढ़ाया और मेरा हाथ उधर निकल गया दीवार के पार। और धीरे धीरे मैं पूरा उधर निकल गया। मतलब वो दीवार थी ही नही। वो एक धोखा था। एक झूठ था। वो दीवार थी। डर की दीवार।
जब तक वो डर था मेरे अंदर.... तब तक वो दीवार थी। जब तक मेरे अंदर डर था, निचे गिर जाने का डर....आगे न जाने का डर। लेकिन जैसी ही वो डर ख़तम हुआ। तो मैं आगे गया, और उस दीवार के परे निकल गया। और उधर जाकर देखा तो मैं अकेला नही था। मेरे जैसे लाखो लोग थे। लेकिन सब छोटे छोटे बच्चे थे। एक भी बड़ा नही था वहाँ पर। छोटे छोटे बच्चे खेल रहे थे। उसी तरह से खेल रहे थे जिस तरह से सालो पहले मैं खेलता था।खेल रहे हैं। कोई कुछ कर रहा है, तो कोई कुछ कर रहा है। और मैं देखकर चौक गया कि ये क्या हो रहा है। सारे के सारे बच्चे ही बच्चे है, बड़े कहा रह गए। फिर मैं आगे गया एक जग़ह पर मुझे प्यास लगी थी..., जहाँ पानी था। मैंने वहाँ जाकर उसमे अपनी शक़्ल देखी तो मैं भी एक बच्चा था। वहाँ पर...., मैं बच्चा बन गया था।
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