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Social media और मानव में संबंध भाग - 03

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Judgement vs Acceptance....अनुमान लगाना या तय करना vs स्वीकार करना।

Hey Dosto!

हम आजकल इतने judgemental हो गए है, judge मतलब अनुमान लगाना, तय करना। कि हम किसी से भी मिलते है, तो हम judge करने लगते है। कि तुम्हारे अंदर ये अच्छा है और तुम्हारे अंदर ये बुरा है।

लेकिन हर कोई चाहता है, की आप उसे सुने, समझे और अपने आप को उसकी जगह पर रखकर देखे।
तो आप उस इंसान को अपने आप ही like करने लगोगे।
वो इन्सान आपको अच्छा लगेगा।

Judgement vs Acceptance

क्या हमे जो judge करते है, वो अच्छे लगते है या फिर हमे जो Accept करते है, वो अच्छे लगते है।
Acceptance का मतलब क्या ? जो हमे judge न करे।
हम जैसे है, वैसे ही Accept क़र ले।
हम पर लेबल न लगाये की तुम्हारे अंदर ये अच्छा है। तुम्हारे अंदर ये बुरा है।
क्योंकि लेबल लगाने का हक़ आपको तब है, किसी के ऊपर जब आप खुद Perfect हो।

जरा सा भी किसी के बारे कुछ सुन कर हम तुरंत लेबल लगा देते है की यार ये कितना घटिया आदमी है। मैं क्या क्या सोचता था इसके बारे में...।
क्या आप बहुत बढ़िया आदमी हो? क्या आपने कभी कुछ गलत नही किया,अपने life में। सोचा है कभी।

तो Acceptance मतलब क्या? कि मेरे में भी बहुत कुछ गड़बड़ है और बहुत कुछ सही है। ऐसे ही सामने वाले के में भी बहुत कुछ गड़बड़ है और बहुत कुछ सही है।
That is Acceptance..

मतलब आप सामने वाले को तब तक Accept नही कर सकते, जब तक के आप अपने आप को मतलब खुद को
पूरी तरह से Accept नही कर लेते।

Thanks, for read.
love you All. #jpnetam


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