Hey Dosto! आप सभी का स्वागत् है, हमारे easygyaan10 blog में। तो दोस्तों आज हम जानेंगे की ये सोशल मिडिया और मनुष्य में क्या संबंध है, सोशल मीडिया ने मानव जीवन में बहुत बड़ा परिवर्तन लाया है और इसके साथ-साथ मानव-मानव संबंधों पर भी गहरा प्रभाव पड़ा है। यह नए संचार के ढंगों को प्रोत्साहित करता है, लेकिन कुछ दुष्प्रभावों के साथ साथ आने वाले चुनौतियों का सामना भी करना पड़ता है। सकारात्मक पहलुओं में, सोशल मीडिया ने लोगों के बीच संवाद को सुगम और त्वरित बना दिया है। लोग अपने दोस्तों, परिवार, और समुदाय के साथ अब भी संपर्क बनाए रख सकते हैं, भले ही वे भौतिक रूप से दूर हों। इससे लोग आपसी रिश्ते मजबूत कर सकते हैं और समय के साथ अपने परिवार और मित्रों के साथ अच्छी तरह से जुड़ सकते हैं। सोशल मीडिया ने विभिन्न समुदायों को एकत्र किया है और उन्हें अपने इंटरेस्ट्स और धार्मिक या सामाजिक उद्देश्यों के अनुसार गुणवत्ता सम्पन्न जानकारी साझा करने का मौका दिया है। इससे लोग विश्वास और सम्मान के साथ समूहों में शामिल हो सकते हैं, जो उनके सोच, मूल्यों, और दृष्टिकोण के साथ मिलते हैं। हालांकि, यहां कुछ चुनौतियाँ...
Hey Dosto!
आप सभी का स्वागत् है, हमारे easygyaan10 blog में। तो दोस्तों आज हम जानेंगे कि 1 का डबल गेमो का आखिर सच क्या है?जैसे :- सत्ता,रूले( कैसीनो गेम) आदि। कुछ लोग इस खेल में जब जितने लग जाते है तो इसे अपना ज़िन्दगी बना लेते है, क्योंकि उनको ये अन्धविश्वास हो जाता है। कि मैं जुएँ में जीत सकता हूँ। और इस खेल में बहुत ज्यादा जितने से उनका जो भरोसा हैं वो Strong हो जाता है। उनका जो faith है, वो बढ़ जाता है। कि मैं जीत सकता हूँ। तो बताओ मेरे भाई क्या जुएँ में क़ोई पूरा जीता है आजतक.............नही।
आप Temporary bases पे तो हरा सकते हो, जुएँ को। मतलब 1 या 2 दिन आप जीत सकते हो, लेकिन आप Reguler खेलते रहो, रोज खेलते रहो। आप जीत ही नही सकते जुएँ से....क्योंकि it's law of probility ( यह प्रायिकता का नियम है जीत 1/100 & हार 99/100). It's proven maths (गणित इसे साबित कर चुकी है) जिसके base पे ये सारे खेल (रूले,सत्ता आदि) चलते है, और वहाँ करोड़ो नही, अरबो नही, खरबो रुपयो का रोज काम होता है। और एक भी आदमी न जीतता है और न ही जीतकर निकलता हैं। लेकिन कुछ लोग कहते है, की मुझे भरोसा है, मैं जुएँ में जीत सकता हूँ। मेरा believe power strong है। बाकी का नही है...। एक जुआरी की शुरुवात ऐसी ही होती है।
जुआ क्या है?
वैसे जुआ क्या है? कभी हार रहे है, कभी जीत रहे है। यही तो है जुआ। और क्या है? कभी काम कर रहा है, कभी काम नही कर रहा है और क्या? जब तक जीत रहे है तब तक मुझे भरोसा था, मुझे पता था। यही आएगा, यही होगा। और जब हारते है तब Luck है। शायद आज क़िस्मत खराब है। वैसे Gambler कैसे बनते है? जो हार जाता है, वो जुआरी नही बनता है। वो तो उसे छोड़ करके, गालियाँ दे करके उस चीज से बाहर निकल जाता है। कि ये चीज मेरे like ही नही है । लेकिन जो उसमे जीत जाता है, वो गया। वो क्या बन गया? एक जुआरी बन गया।
1 का डबल गेम का सच :-
Science कहती है की इस Game की समझ आपके mind में Hypothetical (माना हुआ, अनुमानित, काल्पनिक) level पर चलती है। क्योंकि आजतक ऐसा device नही बना है, जो आपके Thought या सोच की exact frequency (प्रायिकता, बारम्बारता,आवृत्ति) को माप सके। और हर चीज की अलग अलग frequency होती है। इसलिए हमे हर चीज अलग अलग दिखाई पड़ती हैं। लेकिन है सब Energy. जिस चीज को आप माप ही नही सकते उसे आप यही सच है,कैसे बोल सकते हो। जिस दिन ये device बन जायेगी तब हम Exact बता सकते है कि आपके Thought या सोच की होने की सम्भावना क्या है? और कितनी है।
Example :-
एक रिसर्च हुई थी, Superstition(अंधविश्वास) के बारे में। It is very interesting example...... इसमे क्या था कि एक कबूतर को एक पिंजरे में रखा गया, और side में एक मशीन लगाई गई। उस मशीन में क्या किया गया, दाने छोड़े गए। Exact 3-3 मिनट के समय में, हर 3 मिनट बाद वहाँ से एक दाना निकलता और कबूतर को वो दाना मिलता। कबूतर की जैसे जैसे भूख बढ़ रही थी, तो कबूतर को उस दाने का लालच भी बढ़ रहा था। कबूतर ने क्या किया? बीच में असन्तुष्टि की वजह से, परेशान हो गया। क्योंकि उसे दाना जल्दी चाहिए था, दाना बहुत देर में मिल रहा था और उसका भूख और लालच बढ़ रहा था। तो फिर उसने कला बाजियाँ खानी शूरू कर दी, परेशानी की वजह से। वो गोल घूमा, पिंजरे में, और आ करके बैठ गया। तो थोड़ी देर बात एक दाना आया। फिर से गोल घूमा, घूम करके बैठा, दाना आ गया। एक बार फिर से गोल घूमा, घूमकर करके बैठा, फिर से दाना आ गया........।
इससे कबूतर का superstition क्या बन गया? अंधविश्वास क्या बन गया? क्योंकि मैं गोल घूम रहा हूँ, इस वजह से दाना आ रहा है। जबकि ये सच नही है। जो दाना आ रहा है, वो एक मशीन की वजह से आ रहा है, जो एक इंसान के हाथ में है। उसने प्रोग्रामिंग कर रखी है। कि हर 3-3 मिनट बाद दाना आयेगा। जिससे उस कबूतर के गोल घूमने से कोई मतलब नही है। लेकिन उस कबूतर का ये suprstition बन गया, उसका ये एक Hypothesis बन गया। उसे ये अंधविश्वास हो गया, की मैं गोल घूमूँगा, तभी दाना आयेगा। अब वो गोल घूमे जा रहा है, घूमे जा रहा हैं। दाना नही आ रहा है, तब भी गोल गोल घूमे जा रहा है। उसे लगता है की अब आएगा अब आएगा.......।
ऐसा इंसान के साथ भी होता है, उसका भी ऐसी खेलो में ये अंधविश्वास बन जाता है। की मैं रोज खेलूंगा, तभी मैं जीतूँगा। जब की ये सच नही है। आप जीत रहे हो उस प्रोग्रामिंग की वजह से जो एक इंसान ने बनाई है। उसने प्रोग्रामिंग कर रखी है। की आप कैसे जीत पाओगे और किस हफ्ते किस दिन वो आपको जितावायेगा। जिससे उस इंसान के खेलने के तरीके से कोई मतलब नही। लेकिन उस इंसान का ये अंधविश्वास बन गया है, उसका ये hypothesis बन गया है, की मैं रोज खेलूँगा, तभी मैं जीतूँगा।
अब वो खेल रहा है, खेल रहा है। जीत नही रहा है तब भी रोज खेल रहा है। उसे लगता है कि अब मैं जीतूँगा... अब मैं जीतूँगा।इससे आपको क्या समझ आता है ? जब हमे कुछ भी पता न हो,पूरी तरीके से, कि वो चीज हो कैसे रही है? फिर भी हम उसमे अपने फ़न्डे घुसा दे, अपने तरीके डाल दे। तो that is superstition. ये एक अंधविश्ववास है। जो कभी न कभी टूटेगा जरूर।
Thanks for read.
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Thanks for read.
Love you All
#jpnetam.
Nice yrrr Jay Bro....
जवाब देंहटाएंBahot achha hai....
Thanks...
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